> True Love Never Died

Saturday, 17 March 2018

लौकी एक प्रेम कथा

लौकी भगवान ने क्यों बनाई ??
इसकी दो वजह हो सकती है ! पहली बात तो ये कि वो यह चाहते हों कि औरतो के पास कम से कम एक आध तो ऐसा मारक हथियार तो हो ही जिससे वो आदमियो को परास्त कर सके !
औरत लौकी बनाये बिना रह नही सकती !
लौकी नाराजगी जताने का सबसे कारगर तरीका है औरतो का ! थाली मे लौकी देखते ही बेवकूफ से बेवकूफ आदमी ये समझ जाता है कि उससे कोई बडी चूक हो चुकी है !
आदमी लौकी की वजह से ही दबता है अपनी बीबी से ! कायदे से रहता है ! आदमी को तमीज सिखाने का क्रैडिट यदि किसी को दिया जा सकता है तो वो लौकी ही है !
मेरी यह समझ मे यह बात कभी आयी नही कि लौकी से कैसे निपटें ! लौकी आती है थाली में तो थाली थरथराने लगती है ! रोटियाँ मायूस होकर किसी कोने मे सिमट जाती हैं ! जीभ लटपटा जाती है ! आप अचार ,चटनी ,पापड या दही के भरोसे हो जाते हैं ! हर कौर के बाद पानी का गिलास तलाशते हैं आप ! आपको लगने लगता है कि आपकी तबियत खराब है ,आप आई सी यू मे भर्ती हैं ! बंदा डिप्रेशन मे चला जाता है ! दुनिया वीरान वीरान सी महसूस होती है ! कुछ अच्छा होने की कोई उम्मीद बाकी नही रह जाती ! मन गिर जाता है ! लगता है अकेले पड गये हैं ! दरअसल लौकी ,लौकी नही होती , वो आपकी बीबी की इज्जत का सवाल होती है ! आप पूरी हिम्मत करके लौकी का एक एक निवाला गले से नीचे उतारते है ! बीबी सामने बैठी होती है ! जानना चाहती है लौकी कैसी बनी ! आप बीबी का मन रखने के लिये झूठ बोलना चाहते हैं पर लौकी झूठ बोलने नही देती ! लौकी की खासियत है ये ! इसे खाते हुये आदमी हरीशचन्द्र हो जाता है ! आप चाहते हुये भी लौकी की तारीफ नही कर पाते !
मेरा ख्याल से बंदे को शादी करने के पहले यह पता लगाने की कोशिश जरूर करनी चाहिये कि उसकी होने वाली बीबी लौकी से प्यार तो नही करती ! वैसे ऐसी लडकी मिल भी जाये तो इसकी कोई ग्यारंटी नही कि शादी होने के बाद उसका झुकाव लौकी की तरफ नही हो जायेगा ! दुनिया मे ऐसी लडकी अब तक पैदा ही नही हुई है जो बीबी की पदवी हासिल कर लेने के बाद पति को सबक सिखाने के लिये लौकी का सहारा लेने से परहेज करे !
जब तक जहर इजाद नही हुआ था तब तक आदमी दुश्मनो को मारने के लिये लौकी का ही इस्तेमाल किया करता था ! लम्बे टाईम से टिके मेहमान को दरवाजा दिखाने के लिये लौकी से बेहतर और कोई तरीका नही ! थाली में हर दूसरे वक्त लगातार लौकी के दर्शन कर ढीट से ढीट मेहमान भी समझ जाता है कि अब चला चली का वक्त आ गया है !
पर एक तारीफ तो करनी ही पडेगी इस लौकी की ! न्यायप्रिय होती है ये ! सब को एक सा दुख देती है ! स्वाभिमानी भी होती है ये ! अपने मूल स्वभाव और कर्तव्यो से कभी नही डिगती ! लाख मसाले ,तेल डाल दें आप इसमे ! ये पट्ठी टस से मस नही होती ! आप मर जायें सर पटक कर पर लौकी हमेशा लौकी ही बनी रहती है !
एक बात और जो मेरी समझ मे कभी नही आई कि लौकी खाने से ही क्लोरेस्ट्राल क्यो कम होता है ! ये भी भगवान का मजाक ही है आदमी के साथ ! ये काम गुलाब जामुन और काजू कतली को भी सौंप सकता था वो ! पर ऐसा किया नही उन्होने ! जानबूझ कर लौकी को ही सौंपी ये जिम्मेदारी।

Sunday, 11 February 2018

What is Democracy.

love


ये कहानी आपको झकझोर देगी 2 मिनट में एक अच्छी सीख अवश्य पढ़ें....

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

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Tuesday, 20 June 2017

TrueLove

गाँव में कॉलेज नही था इस कारण पढ़ने के लिए में शहर आया था । यह किसी रिश्तेदार का एक कमरे का मकान था।
बिना किराए का था।
आस-पास सब गरीब लोगो के घर थे।
और में अकेला था सब काम मुजे खुद ही करने पड़ते थे। खाना-बनाना, कपड़े धोना, घर की साफ़-सफाई करना।
कुछ दिन बाद एक गरीब लडकी अपने छोटे भाई के साथ मेरे घर पर आई।
आते ही सवाल किया:-" तुम मेरे भाई को ट्यूशन करा सकते हो कयां?"
मेंने कुछ देर सोचा फीर कहा "नही"
उसने कहा "क्यूँ?
मेने कहा "टाइम नही है। मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब होगी।"
उसने कहा "बदले में मैं तुम्हारा खाना बना दूँगी।"
शायद उसे पता था की में खाना खुद पकाता हुँ
मैंने कोई जवाब नही दिया तो वह और लालच दे कर बोली:-बर्तन भी साफ़ कर दूंगी।"
अब मुझे भी लालच आ ही गया: मेने कहा-"कपड़े भी धो दो तो पढ़ा दूँगा।"
वो मान गई।
इस तरह से उसका रोज घर में आना-जाना होने लगा।
वो काम करती रहती और मैं उसके भाई को पढ़ा रहा होता। ज्यादा बात नही होती। उसका भाई 8वीं कक्षा में था। खूब होशियार था। इस कारण ज्यादा माथा-पच्ची नही करनी पड़ती थी। कभी-कभी वह घर की सफाई भी कर दिया करती थी।
दिन गुजरने लगे। एक रोज शाम को वो मेरे घर आई तो उसके हाथ में एक बड़ी सी कुल्फी थी।
मुझे दी तो मैंने पूछ लिया:-" कहाँ से लाई हो'?
उसने कहा "घर से।
आज बरसात हो गई तो कुल्फियां नही बिकी।"
इतना कह कर वह उदास हो गई।
मैंने फिर कहा:-" मग़र तुम्हारे पापा तो समोसे-कचोरी का ठेला लगाते हैं?
उसने कहा- वो:-" सर्दियों में समोसे-कचोरी और गर्मियों में कुल्फी।"
और:- आज"बरसात हो गई तो कुल्फी नही बिकी मतलब " ठण्ड के कारण लोग कुल्फी नही खाते।"
"ओह" मैंने गहरी साँस छोड़ी।
मैंने आज उसे गौर से देखा था। गम्भीर मुद्रा में वो उम्र से बडी लगी। समझदार भी, मासूम भी।
धीरे-धीरे वक़्त गुजरने लगा।
मैं कभी-कभार उसके घर भी जाने लगा। विशेषतौर पर किसी त्यौहार या उत्सव पर। कई बार उससे नजरें मिलती तो मिली ही रह जाती। पता नही क्यूँ?
एसे ही समय बीतता गया इस बीस
कुछ बातें मैंने उसकी भी जानली। की वो ; बूंदी बाँधने का काम करती है। बूंदी मतलब किसी ओढ़नी या चुनरी पर धागे से गोल-गोल बिंदु बनाना। बिंदु बनाने के बाद चुनरी की रंगाई करने पर डिजाइन तैयार हो जाती है।
मैंने बूंदी बाँधने का काम करते उसे बहुत बार देखा था।
एक दिन मेंने उसे पूछ लिया:-" ये काम तुम क्यूँ करती हो?"
वह बोली:-"पैसे मिलते हैं।"
"क्या करोगी पैसों का?"
"इकठ्ठे करती हूँ।"
"कितने हो गए?"
"यही कोई छः-सात हजार।"
"मुझे हजार रुपये उधार चाहिए।
जल्दी लौटा दूंगा।" मैंने मांग लिए।
उसने सवाल किया:-"किस लिए चाहिए?"
"कारण पूछोगी तो रहने दो।" मैंने मायूसी के साथ कहा।
वो बोली अरे मेंने तो "ऐसे ही पूछ लिया। तू माँगे तो सारे दे दूँ।" उसकी ये आवाज़ अलग सी जान पड़ी। मग़र मैं उस वक़्त कुछ समझ नही पाया। पैसे मिल रहे थे उन्ही में खोकर रह गया। एक दोस्त से उदार लिए थे । कमबख्त दो -तीन बार माँग चूका था।
एक रोज मेरी जेब में गुलाब की टूटी पंखुड़ियाँ निकली। मग़र तब भी मैं यही सोच कर रह गया कि कॉलेज के किसी दोस्त ने चुपके से डाल दी होगी।
उस समय इतनी समझ भी नही थी।
एक दिन कॉलेज की मेरी एक दोस्त मेरे घर आई कुछ नोट्स लेने। मैंने दे दिए।
और वो मेरे घर के बाहर खडी थी और मेरी दोस्त को देखकर बाहर से ही तुरंत वापीस घर चली गई।
और फ़िर दूसरे दिन दो पहर में ही आ धमकी।
आते ही कहा:-" मैं कल से तुम्हारा कोई काम नही करूंगी।"
मैने कहा "क्यूँ?
काफी देर तो उसने जवाब नही दिया। फिर धोने के लिए मेरे बिखरे कपड़े समेटने लगी।
मैने कहा "कहीं जा रही हो?"
उसने कहा "नही। बस काम नही करूंगी।
और मेरे भाई को भी मत पढ़ाना कल से।"
मैने कहा अरे"तुम्हारे हजार रूपये कल दे दूंगा। कल घर से पैसे आ रहे हैं।" मुझे पैसे को लेकर शंका हुई थी।इस कारण पक्का आश्वासन दे दिया।
उसने कहो "पैसे नही चाहिए मुजे।"
मेने कहा "तो फिर ?"
मैने आँखे उसके चेहरे पर रखी और
उसने एक बार मुजसे नज़र मिलाई तो लगा हजारों प्रश्न है उसकी आँखों में। मग़र मेरी समझ से बाहर थे।
उसने कोई जवाब नही दिया।
मेरे कपड़े लेकर चली गई।
अपने घर से ही घोकर लाया करती थी।
दूसरे दिन वह नही आई।
न उसका भाई आया।
मैंने जैसे-तैसे खाना बनाया। फिर खाकर कॉलेज चला गया। दोपहर को आया तो सीधा उसके घर चला गया। यह सोचकर की कारण तो जानू काम नही करने का।
उसके घर पहुंचा तो पता चला की वो बीमार है।
एक छप्पर में चारपाई पर लेटी थी अकेली। घर में उसकी मम्मी थी जो काम में लगी थी।
मैं उसके पास पहुंचा तो उसने मुँह फेर लिया करवट लेकर।
मैंने पूछा:-" दवाई ली क्या?"
"नही।" छोटा सा जवाब दिया बिना मेरी तरफ देखे।
मैने कहा "क्यों नही ली?
उसने कहा "मेरी मर्ज़ी। तुझे क्या?
"मुझसे नाराज़ क्यूँ हो ये तो बतादो।"
"तुम सब समझते जवाब दिया बिना मेरी तरफ देखे।
मैने कहा "क्यों नही ली?
उसने कहा "मेरी मर्ज़ी। तुझे क्या?
"मुझसे नाराज़ क्यूँ हो ये तो बतादो।"
"तुम सब समझते हो, फिर मैं क्यूँ बताऊँ।"
"कुछ नही पता। तुम्हारी कसम। सुबह से परेसान हूँ। बता दो।"
" नही बताउंगी। जाओ यहाँ से।" इस बार आवाज़ रोने की थी।
मुझे जरा घबराहट सी हुई। डरते-डरते उसके हाथ को छूकर देखा तो मैं उछल कर रह गया। बहुत गर्म था।
मैंने उसकी मम्मी को पास बुलाकर बताया।
फिर हम दोनों उसे हॉस्पिटल ले गए।
डॉक्टर ने दवा दी और एडमिट कर लिया।
कुछ जाँच वगेरह होनी थी।
क्यूंकि शहर में एक दो डेंगू के मामले आ चुके थे।
मुझे अब चिंता सी होने लगी थी।
उसकी माँ घर चली गई। उसके पापा को बुलाने।
मैं उसके पास अकेला था।
बुखार जरा कम हो गया था। वह गुमसुम सी लेटी थी। दीवार को घुर रही थी एकटक!!
मैंने उसके चैहरे को सहलाया तो उसकी आँखों में आँसू आ गए और मेरे भी।
मैंने भरे गले से पूछा:- "बताओगी नही?"
उसने आँखों में आँसू लिए मुस्कराकर कहा:-" अब बताने की जरूरत नही है। पता चल गया है कि तुझे मेरी परवाह है। है ना?"
मेरे होठों से अपने आप ही एक अल्फ़ाज़ निकला:-
" बहुत।"
उसने कहा "बस! अब में मर भी जाऊँ तो कोई गिला नही।" उसने मेरे हाथ को कस कर दबाते हुए कहा।
उसके इस वाक्य का कोई जवाब मेरे लबों से नही निकला। मग़र आँखे थी जो जवाब को संभाल न सकी। बरस पड़ी।
वह उठ कर बैठ गई और बोली रोता क्यूँ है पागल? मैने जिस दिन पहली बार तेरे लिए रोटी बनाई थी उसी दिन से चाहती हूँ तुजे। एक तू था पागल । कुछ समझने में इतना वक़्त ले गया।"
फिर उसने अपने साथ मेरे आँसू भी पोछे।
फीर थोडी देर बाद उसके घर वाले आ गए।
रात हो गई थी। उसकी हालत में कोई सुधार नही हुआ।
फिर देर रात तक उसकी बीमारी की रिपोर्ट आ गई।
बताया गया की उसे डेंगू है।
और ए जान कर आग सी लग गई मेरे सीने में।
खून की कमी हो गई थी उसे। पर खुदा का शुक्र है की मेरा खून मैच हो गया ब
था उसका भी। दो बोतल खून दिया मैंने तो जरा शकून सा मिला दिल को।
उस रात वह अचेत सी रही।
बार-बार अचेत अवस्था में उल्टियाँ कर देती थी।
मैं एक मिनिट भी नही सोया उस रात।
डॉक्टरों ने दूसरे दिन बताया कि रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से कम हो रही है। खून और देना होगा। डेंगू का वायरस खून का थक्का बनाने वाली प्लेटलेट्स पर हमला करता हैं । अगर प्लेटलेट्स खत्म तो पुरे शरीर के अंदरुनी अंगों से ख़ून का रिसाव शुरू हो जाता है। फिर बचने का कोई चांस नही।
मैंने अपना और खून देने का आग्रह किया मग़र रात को दिया था इस कारण डोक्टर ने मना कर दिया ।
फीर मैंने मेरे कॉलेज के दो चार दोस्तों को बुलाया। साले दस एक साथ आ गए। खून दिया। हिम्मत बंधाई। पैसों की जरूरत हो तो देने का आश्वासन दिया और चले गए। उस वक़्त पता चला दोस्त होना भी कितना जरूरी है। पैसों की कमी नही थी। घर से आ गए थे।
दूसरे दिन की रात को वो कुछ ठीक दिखी। बातें भी करने लगी।
रात को सब सोए थे। मैं उसके पास बैठा जाग रहा था।
उसने मुजे कहा:- " पागल बीमार मैं हूँ तू नही। फिर ऐसी हालत क्यों बनाली है तुमने?"
मैंने कहा:-" तू ठीक हो जा। मैं तो नहाते ही ठीक हो जाऊंगा।"
उसने उदास होकर पूछा ।:-" एक बात बता?"
मैने कहा"क्यां?"
उसने कहा "मैंने एक दिन तुम्हारी जेब में गुलाब डाला था तुजे मिला?
मैने कहा "सिर्फ पंखुड़ियाँ मिली थी "हाँ"
उसने कहा "कुछ समझे थे?"
"नही।"
"क्यूँ?"
"सोचा था कॉलेज के किसी दोस्त की मज़ाक है।"
"और वो रोटियाँ?"
"कौनसी?"
"दिल के आकार वाली।"
"अब समझ में आ रहा है।"
"बुद्दू हो"
"हाँ"
फिर वह हँसी। काफी देर तक। निश्छल मासूम हंसी।
"कल सोए थे क्या?"
"नही।"
"अब सो जाओ। मैं ठीक हूँ मुझे कुछ न होगा।"
सचमुच नींद आ रही थीं।
मग़र मैं सोया नही।
मग़र वह सो गई।
फिर घंटेभर बाद वापस जाग गई।
मैं ऊंघ रहा था।
"सुनो।"
"हाँ।मैं नींद में ही बोला।
"ये बताओ ये बीमारी छूने से किसी को लग सकती है क्या?"
"नही, सिर्फ एडीज मच्छर के काटने से लगती है।"
"इधर आओ।"
मैं उसके करीब आ गया।
"एक बार गले लग जाओ। अगर मर गई तो ये आरज़ू बाकी न रह जाए।"
"ऐसा ना कहो प्लीज।" मैं इतना ही कह पाया।
फिर वो मुझसे काफी देर तक लिपटी रही और सो गई।
फिर उसे ढंग से लिटाकर मैं भी एक खाली बेड पर सो गया।
मग़र सुबह मैं तो उठ गया। और वो नही उठी। सदा के लिए सो गई। मैंने उसे जगाने की बहुत कोशिश की थी।पर आँखे न खोली उसने।वो इस सँसार को मुझे छोडकर इस दुनिया से जा चुकी थी। मुझे रोता बिलखता छोड़कर।


sourabhnissa@gmail.com

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